साधना, योग और आयुर्वेद

आज हम साधना योग और आयुर्वेद का तुलनात्मक विश्लेषण कर रहे हैं।

समाज में साधना पथ जो मूलतः योग एवं आयुर्वेद की ही तरह से सनातन की मूल अभिव्यक्ति है। किंतु समाज से व्यापक रूप से उपेक्षित है।

हिन्दू समाज के 100 में से शायद 10 लोग ही इस तरफ रुख करते हैं।

मूल कारण है समाज में साधना पथ के उज्ज्वल पक्ष का प्रचारित कम होना , जबकि चमत्कारों का ज्यादा प्रचार प्रसार जिसे एक विज्ञान का पाठक मस्तिष्क सिरे से नकार देता है।

कभी विचार कीजिए कि अगर योग और आयुर्वेद भी मात्र कायाकल्प कुंडलिनी और उस विषय के उन्ही विषयो के प्रचार प्रसार तक सीमित होता जिनकी सफलता का प्रतिशत काफी न्यून होता है , तो क्या आज सम्पूर्ण विश्व में इसका प्रचार प्रसार संभव हो पाता ??

ठीक यही समस्या जीवन को सुखद सुगम और सफलता दायक बनाने वाली विधा साधना पथ के साथ है।

मैंने साधना पथ पर अपने ही तथाकथित गुरुभाइयों नवीन साधना जिज्ञासुओं के मध्य ऐसे असंख्य उदाहरण देखें हैं जो वर्चुअल चमत्कार कारक सिद्धियों के चक्कर में अपना वास्तविक भौतिक जीवन का सत्यानाश करके बैठे हैं।

इसलिए यह आवश्यक है कि पहले जमीन पर शुद्ध से चलना और पैर जमाना सीख लो फिर हवा पानी के स्वप्न पालें…

साधना का पथ एक अत्यंत ही चमत्कारी माध्यम है जीवन की नकारात्मकता को मस्तिष्क की नकारात्मकता को असफलताओं को दूर करने के लिए…

साधना पथ का अनुसरण करें जीवन सफल सुखद बनाएं किन्तु भूल से भी बाबा बनने का प्रयास नहीं करें क्योंकि उस स्थिति में ही व्यक्ति सबसे ज्यादा कंफ्यूज होता जाता हैं और परिणाम स्वरूप जीवन कठिन होता हैं।

क्यूंकि मस्तिष्क को एक विकृति से निकाल कर दूसरी विकृति में झोंक दिया गया ।

इसलिए

और हिंदुत्व को ध्रुवीकरण के दृष्टिकोण से भी देखा जाए तो यह आवश्यक हो गया है की व्यक्ति अपने धर्म में ज्यादा आस्था विश्वास दृढ़ कर सके और यह साधना पथ के अनुसरण से सहज ही संभव हो जाता है।

काली..

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