गुरु तो सदा सर्वदा एक ही है । और बिन पात्र कुपात्र की चिंता किए
वो सरल सहज हृदय से ज्ञान गंगा को प्रवाहित करते हैं।
महादेव की सेटिंग ही ऐसी है की कोई दुरुपयोग नहीं कर पाता उन में से
ज्ञान गंगा के अविरल वर्षा का उतना ही जल ग्रहण कर पाते जितनी उनकी क्षमता होता हैं।
कई बार जिसे सब तंत्र का दुरुपयोग समझ रहे होते हैं।
वो स्वयं की न्यूनताएँ और कर्म फलों का प्रतिफल होता हैं।
इसलिए कहा गया है गुरु के समक्ष कपट के आवरण को पूरी तरह हटा देना चाहिए।
ताकी गुरु स्नेह वश स्वयं आपकी ग्राह्ता को देखकर कुछ विशेष कृपा कर सकें।
ॐ नमश्चण्डिकायै