गुरुत्व, नैतिकता और धन्धा

गुरुत्व वह चेतना है जो हमें इष्ट से जोड़ती हैं।

इसलिए सनातन समाज में गुरु को बहुत ही ऊंचा पद प्राप्त है तथा उनकी “तुल्यता” त्रिदेवों तक से की गयी हैं।

लेकिन कटु सत्य है कि आज गुरु पद ज्ञान, चेतना और धर्म संवर्धन का शिलालेख बनने से ज्यादा धन संग्रह और बलात्कार के लिए सुर्खियों में रहता हैं।

एक बाबा जी हैं उनके शो में खड़े होकर 13 सेकंड बोलने का टिकट 11 हजार में मिलता हैं। उनके नजदीक बैठने का टिकट 8-9 हजार में मिलता है और बाकी फर्स्ट क्लास वाला गरीबों वाला टिकट 5000 में मिलता हैं।

एक साधारण से बाबा है जो सीधे परमेश्वर के अवतार (मजाक कर रहा हूँ) खुद को बोलते हैं TV पर आते हैं उनका शो का मूल्य काफी कम 2 – 2.5 हजार हैं। लेकिन वहां आपको न्यू बॉर्न का टिकट भी उतने में ही लेना होगा । हाफ टिकट या बच्चा है जैसा कोई छूट नहीं मिलता….

अभी हाल ही में बीते गुरु पूर्णिमा में किसी ने मुझे बताया कि अमुक बाबा को माला पहनाने का टिकट इतने में था प्रसाद इतना सहयोग राशि देने के बाद ही पर्ची दिखाने पर मिलेगा…एक ही साधना के विभिन्न पैकेटों में किसी को कोई यन्त्र किसी को कोई वगैरा वगैरा…

हमारे समाज में हिंदुओं में जो अपने धर्म के प्रति उदासीनता है उसका कारण उपरोक्त उदाहरणों से जाने यो तो बस कुछ हैं। लाखों लाख है जिनके ठगी बेईमानी और धूर्तता का हिसाब लगाना कठिन कार्य है।

सौर्य सूक्त पढ़ने का ज्ञान नहीं और बन गए बाबा …

ज्यादा नहीं आज से 50 वर्ष पूर्व तक ही एक महान गुरु आत्मा ने शरीर धारण कर समाज का विषपान किया धर्म के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया । लेकिन आज तक कोई उन श्रद्धेय गुरुदेव का नाम तक नहीं जान सकें (दतिया स्वामी जी) क्योंकि उनको अपना एडवरटाइजमेंट नहीं करना था उन्हें धर्म का साधना मार्ग का एडवरटाइजमेंट करना था…

यूं तो उनके अनेक शिष्य हुए फिर भी उन्होंने 3 आचार्य नियुक्त किए अपने बाद दीक्षादि के लिए…

वो सभी भी अत्यंत सरल सहृदय और सुलभ है उनमें जो है अभी उनसे कभी भी मिल सकते है थोड़ा प्रयास करके …

इस बात से डरने की जरूरत नहीं है कि बाबा के नजदीक जाने पर कहीं किसी माला दीक्षादि के बहाने से बाबा आपका जेब न काट दें..

जो वास्तव में माँई के गोद जैसी मातृत्व प्राप्त हों जो living god गुरु रूप में पाएं । उनको कोई क्या दे पाएगा ।

दतिया की दीक्षा प्रणाली भी अत्यंत मौलिक है अक्टूबर से 3 महीने शाक्त क्रम दीक्षा के लिए फार्म भरे जाते हैं। दूर दूर से करीब 21 हजार साधक फार्म भरते हैं। उनमें 21000 में से मात्र 100 लोगों का चयन एक अबोध बच्ची द्वारा पर्ची निकाल कर किया जाता हैं।

उन 100 को बुलाया जाता हैं। उन्हें आश्रम में ही निर्धारित तारीख को पहुंच कर 10 दिनों में सवा लाख गायत्री जप करना होता हैं। जो कर पाते आगे उनकी दीक्षा क्रिया होती हैं बाकी घर लौट जाते हैं। इसको बोलते हैं नैतिकता उन दीक्षाधिकारियों का नाम आपको उतना सुलभ नहीं मिलेगा जितना ढोंगियों के…

क्योंकि स्वर्ण अपना एडवरटाइजमेंट नहीं करता इसलिए लोग कम जानते उन्हें और ये अच्छा भी है।

कचरा लोगों के लिए जो स्वार्थ साधने शॉपिंग करने गुरु चरण खोजते हैं उनको ऐसे ही लोग उचित हैं।{

कोई भी व्यक्ति बड़ा से बड़ा जघन्य अपराध करके इनके पास पहुंच जाओ धन दो और मोक्ष प्राप्ति दीक्षा ले ले , त्रिनेत्र जागरण करवा लें सहस्रार जागरण की क्रिया सहस्र बार करवा लें बस रुपया होना चाहिए ।

खैर यह तो मेरा क्रोध है जो मैंने ऐसा कहा लेकिन वास्तविकता में ये नकली धंधेबाज गुरु रूपी दीमक समाज की धर्म के प्रति आस्था को नित्य चाल रहें है उसको खोखला कर रहे हैं।

यही कारण है कि हिंदुस्तान में ही रहकर ये विभिन्न राजनैतिक दल हिंदुओ की ही खिलाफत कर रहे हैं क्योंकि उनको यह अच्छी तरह ज्ञात है कि हिंदुओं में धार्मिकता नहीं होने के कारण धार्मिक एकता भी शून्य प्रायः हैं।

पहले नित्य कृत पापों से दूरी बनाए फिर मोक्ष की सोचें , पहले दो नेत्रों से देखने की क्षमता पूर्ण करें फिर त्रिनेत्र की सोचें….

हर हर महादेव

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