शिव पुराण साधना का महत्व

श्रावण का पुण्य काल चल रहा है।
एक प्रकार से देखा जाए तो यह पूरा का पूरा महीना ही साधनात्मक दृष्टिकोण से श्रेष्ठतम होता हैं।

ऐसे में यदि जीवन में कोई दुःख, अभाव, चिंता ,व्यथा हो तो हमें उसके लिए गुरु निर्देशित साधनाओ का अवलंबन लेना चाहिए ।

किन्तु अनेकों बार ग्रहों की माया से व्यक्ति अवसाद ग्रस्त हो जाता है ,अर्थात उसकी मानसिक अवस्था में साधना करने योग्य दृढ़ता रह ही नहीं जाती है ।

ऐसी ही परिस्थितियों में व्यक्ति की आस्था – श्रद्धा बुरी तरह टूट चुकी होती है अपने इष्ट देव/देवी के प्रति…

और परिणाम ज्यादा से ज्यादा भयावह होता चला जाता है।

ऐसे में यह आवश्यक होता है की अपनी आस्था, श्रद्धा, विश्वास का पुनसृजन किया जाए…

क्यों की श्रद्धा विश्वास के अभाव में हमारा प्राण तत्व क्रमशः अधिक से अधिक क्षयी होता ही चला जाता है और उसका भौतिक परिणाम परिस्थितियां हमें हाथी के पैर की तरह कुचलने पर उतारू हो जाती हैं।

इसलिए ऐसे समय में हमें सर्व प्रथम अपना प्राथमिक ग्रह उपचार करके इष्ट के महिमा वर्णन संबंधी पुराणों का आश्रय लेना चाहिए ।

अब बात करता हूँ शिव पुराण की…

शिव पुराण का पाठ हो और साथ में साधनात्मक नियमों का पालन हो जैसे..अनुचित संभोग, मांस, मदिरा, हिंसा, अनावश्यक झूठ, कटु वचन, दूसरों का अपमान आदि से पूरी तरह दूर रहते हुए ।

तो सत्य कहा जाए जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है भगवान के अमृतमय लीला वर्णन के पठन मात्र से असंभव से असंभव कार्य सिद्ध हो जाते हैं।

अतः ऐसे समय में व्यक्ति को इसका अनुकरण करना चाहिए ।

बड़ी से बड़ी साधनाए भी जहां हाथ खड़े कर देतीं हैं वहां बाबा का लीला वर्णन चमत्कार आरम्भ करता है।

ॐ नमः शिवाय ।

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